भारतवर्ष में गुरु शिष्य की सनातन परम्परा का उत्सव सहत्र वर्षो से होता आ रहा है। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा गया तीर्थ क्षेत्र में फल्गुनी नदी बायपास पुल स्थित मंत्रालय वैदिक पाठशाला, श्री हनुमान मंदिर में गुरु पूर्णिमा महोत्सव का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
स्वामी श्री मंत्रालय रामाचार्य जी गुरुमहराज के तत्वावधान में 20 वटुक ब्रम्हचारियो का नूतन यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया। अनेक राज्यों से आए लगभग 700 से अधिक शिष्य श्री गुरुमहराज जी से दीक्षा एवं गुरुमंत्र लेकर, मुद्रा धारण कर दीक्षित हुए। गुरुपूर्णिमा जिसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि महर्षि श्री वेदव्यास जी ने ही वेद,वेदांत समस्त ज्ञान,विज्ञान को लिपिबद्ध किया,उनका प्राकट्य आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही हुआ था। इसीलिए हम सभी को ज्ञान से परिचित करवाने वाले उन गुरु के लिए हम गुरुपूर्णिमा उत्सव मनाते है।श्री गुरुजी ने अपने अनुग्रह संभाषण में शिष्यों को संयम,सदाचार, एवं चारित्रिक बल पर विशेष रूप से ध्यान देने हेतु उपदेश किया। उन्होंने अपने संभाषण में कहा की आज समाज में सदाचार एवं चरित्र का पतन हो रहा है,ज्ञान की कमी हो रही है, भगवान एवं गुरु के शरणगत में आए हुए शिष्यों का दायित्व है की वो अपने जीवन को दैविक गुणों से परिपूर्ण करने का प्रयत्न करते रहे। विश्वशांति हेतु मंत्रालय वैदिक पाठशाला के आचार्यों एवं विद्यार्थियों द्वारा पूजन,यज्ञ, हवन का कार्यक्रम किया गया। इस अवसर पर हजारों की संख्या में शिष्यगण अनेक स्थानों से उपस्थित रहे,कार्यक्रम के समापन पर सभी भक्तो ने विशाल भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया। इस समस्त कार्यक्रम की जानकारी पंडित राजा आचार्य जी ने दी।