पटना :
जी हां , सही पढ़ रहे हैं आप। प्रयागराज के जीबी पन्त विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर बद्रीनायरण एक सभा मे हिंदुत्व की परिभाषा दे पाने में अपनी असमर्थता जता दी। ज्ञात हो कि बद्रीनायरण की पुस्तक ‘रिपब्लिक ऑफ हिंदुत्व’ की परिचर्चा के दौरान परिचर्चा में शामिल काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के छात्र अभयप्रताप सिंह ने जब बद्रीनायरण से हिन्दुत्व की परिभाषा पूछी तो प्रो. बद्रीनायरण ने जबाब देने में अपनी असमर्थता जताते हुए कहा कि मुझे भी हिंदुत्व की परिभाषा नही पता। इस परिचर्चा में कई बड़े शिक्षाविद , कुलपति , शोध छात्र और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े पदाधिकारी भी मौजूद थे। जैसा कि आपको बता दें कि हिन्दुत्व पर सबसे अधिक किताबें लिखकर प्रोफेसर बद्रीनायरण ने खूब रॉयलिटी बटोरी है।वर्ष 2014 तक प्रोफेसर बद्रीनायरण का झुकाव वाम सँगठनो की तरफ था तब बद्रीनायरण की एक पुस्तक ‘ हिंदुत्व की मोहिनी मन्त्र’ में उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रति खूब अनाबसनाब लिखा था। इस पुस्तक के कारण अकादमिक जगत में प्रोफेसर बद्रीनायरण को काफी आलोचना का शिकार भी होना पड़ा था। वर्ष 2014 के बाद प्रोफेसर बद्रीनायरण का झुकाव संघ की तरफ हो गया फिर उन्होंने संघ के गुणगान में हिंदुत्व पर किताबें लिखनी शुरू कर दी।
नाम नही छापने की शर्त पर बिहार भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी ने हमसे बात करते हुए बताया कि ऐसे लोगो के कारण ही संघ और संगठन की प्रतिष्ठा धूमिल होती है। उन्होंने ये भी कहा कि हमलोग अपने संगठन और शीर्ष नेतृत्व से हमेशा ऐसे अवसरवादीयों से सावधान रहने की सलाह देते हैं।
निश्चय ही यह प्रश्न का विषय है कि हिंदुत्व पर इतनी सारी किताबें लिखने वाले प्रोफेसर बद्री सच मे हिंदुत्व की परिभाषा नही जानते हैं या फिर प्रोफेसर बद्रीनायरण के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी रही होगी जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अकादमिक जगत के बड़े शिक्षाविदों के सामने प्रोफेसर बद्रीनायरण ने हिन्दुत्व की परिभाषा देने में अपनी असमर्थता जता दी।
खबर ये भी है कि महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय , मोतिहारी के कुलपति बनने की रेस में प्रोफेसर बद्रीनायरण का नाम तेजी से उछल रहा है जिसका विश्वविद्यालय के कुछ छात्र और स्थानीय लोग सोशलमीडिया पर उनका खूब विरोध कर रहे हैं। विरोध का कारण पूछने पर छात्र व आमजन बताते हैं कि महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पुराने कुलपतियों का कार्यकाल काफी विवादित रहा और अपनी पुस्तक और विचारधारा को लेकर प्रोफेसर बद्रीनायरण पहले से ही विवादों में रहना पसंद करते हैं। विवादित कुलपतियों के कारण केंद्रीय विश्वविद्यालय और शहर की प्रतिष्ठा धूमिल होती है और छात्रों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है ऐसे में हमे किसी बड़े शिक्षाविद की जरूरत है फिर से किसी विवादित व्यक्तित्व की नही।