प्रोफेसर तेजप्रताप सिंह |
बिहार के महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी सहित देश के कई नामचीन विश्वविद्यालयों में इस वक्त कुलपति का पद रिक्त है। इन रिक्त पदों को शीघ्र भरने की प्रक्रिया में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय पूरे दमखम के साथ लगा है। हाल ही में प्रो. योगेश सिंह को दिल्ली विश्वविद्यालय का नया कुलपति बनाया गया है। मोतिहारी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भी जल्द नए कुलपति की नियुक्ति होनी है लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया से पूर्व शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित 05 नामो में से कुछ नामो पर विवाद बढ़ता जा रहा है। स्थानीय छात्र संगठन , केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ एवं समाजसेवियो ने भ्रष्ट नामो का विरोध किया है व महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी के लिए योग्य कुलपति की मांग की है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह उर्फ टीपी सिंह का नाम भी मोतीहारी स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के वीसी पद के लिए चल रहा है। आरोप है कि प्रोफेसर तेजप्रताप सिंह का पूरा अध्ययन अध्यापन व शोध नक्सल पर केंद्रित रहा है। ज्ञात हो कि प्रोफेसर तेजप्रताप सिंह के रिसर्च प्रोजेक्ट्स के विरोध में छात्र संघ ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इनके उम्मीदवारी का विरोध जताया था। अब छात्र संघ ने इनके एक आलेख ‘द माओइस्ट इंसर्जेन्सी इन इंडिया’ का विरोध किया है और प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह दावा किया है कि इनकी वैचारिकी वामपंथी है ये पद की महत्वकांक्षा लिए नवसंघी बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, छात्र संघ अध्यक्ष ने जारी विज्ञप्ति में आशंका जताया कि देश के विश्वविद्यालयों को लेफ्ट का गढ़ बनाया जाए उसकी ये साजिश हो सकती है।
क्या है आलेख में
यह आलेख वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ है जिसपर छात्र संगठन ने आरोप लगाया है कि इन्होंने अपने आर्टिकल में नक्सलवाद को ‘माओवादी विद्रोह’ की संज्ञा देते हुए उसे भारतीय माओवादी आंदोलन, लोकप्रिय आंदोलन, कम्युनिस्ट आंदोलन से संबोधित किया है। रेड कॉरिडोर को वह देश का पिछड़ा, गरीब और अविकसित क्षेत्र मानते है हुए वहां के निवासियों को दो वर्ग आदिवासी और दलित समूह में विभाजित करते हुए उसे भारत में हाशिए का शोषित समाज मानते है, ठीक उसी प्रकार जैसे नक्सल समाज में विभाजनकारी सोच को बढ़ावा देते रहे है। ध्यान देने वाली बात है कि वह अपने आलेख में कही भी सरकार के विकासात्मक कार्यों एवं उनसे आने वाले बदलाव का जिक्र तक नही करते है। जबकि अपने पूरे आलेख में वह चीन का उदाहरण देना नहीं भूलते है। वह यह भी मानते है कि सरकार नक्सल समस्या से निपटने के लिए अमेरिकी आतंक विरोधी रणनीति का अनुसरण कर रही है और माओवादी क्षेत्र में अधिक अर्धसैन्य बल की तैनाती कर रही है, जिसका उद्देश्य इन क्षेत्रों का नियंत्रण उनसे छीनना है। सरकार की यह रणनीति नक्सलियों की गोरिल्ला युद्ध का कारण बनती है। माओवादी आंदोलन को वह अलगाववादी आंदोलन नहीं मानते है, उसे राज्य के खिलाफ लंबे समय तक कृषि आधारित सशत्र संघर्ष से जोड़कर देखते है, जिसके माध्यम से नक्सल पहले ग्रामीण इलाकों में सत्ता हथियाने के बाद शहरों को घेर सकते है। वह माओवाद संघर्ष के लिए भारतीय राज्य को जिम्मेदार मानते है, जिसमें वह आदिवासी और दलित को मूल मानते हुए उनपर भारतीय राज्य द्वारा उपेक्षित करने का आरोप लगाते है और मानते है कि आजादी के बाद के वर्षों में उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। इन दो समूहों को वह आर्थिक विकास की मुख्यधारा से बाहर देखते है और अन्य नक्सलियों की तरह वह भी मानते है कि आदिवासियों को वन भूमि और संसाधन तक की पहुंच से वंचित कर दिया गया है। वन अधिकार और अन्य क़ानूनों से आदिवासी और भारतीय समाज के अन्य गरीबों के सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को संबोधित नहीं किया गया है। सरकार को नक्सलियों को खत्म करने की अपनी नीति को रोकना होगा। सरकारी सैन्य बल द्वारा पहले ही कई नक्सलियों को खत्म किया जा चुका है, यह रणनीति अल्पकाल में सफल हो सकती है, लेकिन लंबी अवधि में यह विफल होना तय है, क्योंकि नया नेतृत्व सामने आएगा। वह मानते है कि राज्य को केवल गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से उखाड़ फेकना संभव नही है, इसलिए भारतीय नक्सलियों को नेपाल का उदाहरण लेते हुए चुनाव में भाग लेकर सरकार चलानी चाहिए। यह भारतीय नक्सलियों के लिए असंभव नही है।
प्रोफेसर तेजप्रताप की विवादित टिप्पणी |
प्रोफेसर टीपी सिंह के कुलपति पद की दावेदारी से मोतिहारी के आमजन समाजसेवीयों व छात्र संगठनो में आक्रोश है। टीपी सिंह जैसे नक्सल समर्थक व उनके हितकारी मानसिकता को मोतिहारी के लोग सेना और सरकार का अपमान समझते हैं और बतौर कुलपति प्रोफेसर तेजप्रताप सिंह के उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। छात्र संघ ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि तेजप्रताप सिंह बहुरूपिया हैं नक्सल समर्थक हैं कांग्रेस के लाडले रहे हैं तभी छत्तीसगढ़ के नक्सलियों पर इनके रिसर्च प्रोजेक्ट्स सरकार द्वारा वित्तपोषित होते थे हमे इनकी वैचारिकी पहले से ही पता थी और हम पत्र के माध्यम से महामहिम , पीएमओ व शिक्षा मंत्रालय से इनकी पुनः शिकायत करेंगे एवं बतौर कुलपति इनकी उम्मीदवारी का विरोध करते हैं।
http://distilledmagazine.com/the-maoist-insurgency-in-india-and-the-prospect-of-peace/