विकास जी: जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा गांधी युग को माना जाता है लेकिन क्या आपने कभी इस बात की कल्पना करी है कि यदि गांधी नही होते तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का स्वरूप कैसा होता।
वर्ष 1917 , जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद बिहार के किसान नेता राजकुमार शुक्ल के निवेदन पर निलहे किसानों की दुर्दशापूर्ण स्थिति से अवगत होने चम्पारण के जिला मुख्यालय मोतिहारी पहुचें थे । तब गांधी जी की पहचान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक बड़े चेहरे के तौर पर नही थी। वार्ता के उद्देश्य से नील के खेतों के तत्कालीन अंग्रेज मैनेजर इरविन ने गांधी जी को रात्रि भोज पर अपने यहाँ आमंत्रित किया , लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की मंशा वार्ता नही कुछ और ही थी । ब्रिटिश हुकूमत गांधी जी की सुनियोजित तरीके से हत्या करना चाहती थी।
25 जून 1869 को जन्मे मूलतः चम्पारण बिहार के रहने वाले ‘बतख मियाँ अंसारी’ अंग्रेज अधिकारी इरविन के यहाँ रसोईये का काम करते थे। इरविन ने गांधी जी की हत्या के लिए बतख मियां को गांधी जी के सामने जहर मिले सुप के ट्रे को पेश करने का आदेश दिया। चम्पारण क्षेत्र के किसानों पर अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी रवैये से बतख मियां अंसारी भी काफी व्यथित थे , उन्हें गांधी जी मे किसानों के लिए उम्मीद की एक नई किरण दिख रही थी परन्तु बतख मिया अंसारी अपने साहब के हुक्म को टाल नही सके और ट्रे लेकर गाँधी जी के पास पहुचें । ट्रे लिए खड़े बतख मिया को जब गांधी जी ने सर उठाकर देखा तो वे फुटकर रोने लगें , इस तरह सारी बातें परत दर परत अपने आप खुल गयी और इस तरह बतख मियां अंसारी गाँधी जी के प्राणरक्षक बन गए।