पटना। बिहार की नई राजनीतिक पार्टी प्लुरल्स के प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार में बंद पड़ी चीनी मिलों का जायजा लेने के बाद कहा कि बिहार सरकार ने चीनी उधोग को गर्त में ढकेल दिया है. सरकारी उदासीनता और अकर्मण्यता की जुगलबंदी ने चीनी उद्योग में “चैम्पियन बिहार” को “फ़िसड्डी बिहार” में बदल दिया है. उन्होंने बंद पड़ी मिलों को फिर से चालू करके रोज़गार का सृजन करने का वादा किया. इससे गन्ना उत्पादक किसानों को भी लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि “बिहार तब से चीनी उद्योग का चैम्पियन था जब देश में यह स्थापित भी नहीं हुआ था. अब पश्चिम व दक्षिण के शुष्क राज्य भी चीनी उद्योग में आगे निकल गए तो यह कुछ और नहीं बल्कि बिहार की सैकड़ों चीनी मिल के पतन की क़ीमत पर हुआ है, और पुनर्जीवन के प्रयास? सिफ़र!”
बिहार सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि “गोरौल चीनी मिल, वैशाली, बिहार के सबसे बड़े चीनी मिलों मे एक 1949 में स्थापित, हज़ारों रोज़गार, हज़ारों खुशहाल गन्ना किसान, उत्तर बिहार की शान, 1992 में बंद, किसान बर्बाद, मज़दूर तबाह, करोड़ों बकाया, आत्महत्याएं, अरबों की मशीन-ज़मीन बर्बाद, चोरी-अतिक्रमण…सब नाश! यही बिहार का औद्योगिक इतिहास है!” उन्होंने कहा कि” अब बदलाव नहीं तो बिहार की बेशर्मी होगी! गोरौल चीनी मिल का विनाश वह सत्य बताता है जो हम सुनना नहीं चाहते. बिहार में सभी तथाकथित नेताओं की प्रतिभा (यदि हो) को समाकलन कर दिया जाय और 100 साल भी दिया जाय तो इनसे नहीं होगा. क्योंकि इनको करना नहीं आता जैसा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कहते थे कि जो सिद्धांत में सही नहीं वह व्यवहार में कभी नहीं हो पाएगा. यह बात अब ज़मीन पर जनता को भी पता है और वे बदलाव को तैयार हैं”.
चैम्पियन से फ़िसड्डी बनने की बात पर सुश्री चौधरी कहती हैं कि “यह बिहार के थके हुए शासन की थकी हुई कहानी है. 1840 में देश का पहला चीनी कारख़ाना बिहार में, 1960 के दशक तक देश में अग्रणी चीनी उत्पादक, 1970 के दशक से दूसरे राज्य से पिछड़ना शुरू होकर 1980 के दशक से पतन, 1990 के दशक में ताले बंद और 2000 के बाद जंग लगाने और सड़ाने की प्रक्रिया शुरू हुई. हर बंद चीनी मिल में कुछ लोग मिल जाते हैं, जो सुनहरे-मीठे दिन को याद करते आहें भरते हैं – “ओह क्या दिन हुआ करते थे, हज़ारों लोग, मिल से सटे स्टेशन पर गन्ने से लदी मालगाड़ियाँ, बड़ा व्यापार! सब नाश!”
बिहार में चीनी उद्योग को फिर से जीवित करने के सवाल पर वह कहती है “बिहार के औद्योगिक इतिहास की कहानियाँ अब दादा-दादी की कहानियों जैसी हो गई हैं – “एक समय की बात है, एक चीनी मिल था, उसकी आवाज़ से लोग सुबह जगा करते थे….”. अब आहें भरने और कहानियाँ सुनाने का समय ख़त्म हो चुका है. कहानी का पात्र और श्रोता बनने से बेहतर है कि विकास की, असली वाले विकास की, कहानी लिखी जाए”. हर चीनी मिलों के बर्बाद होने की एक ही कहानी है. वह कहती हैं “मढौरा सुगर मिल, 94 साल के बाद 1998 में बंद हो गया जिससे 2000 वर्कर परिवार बर्बाद हो गए इसके साथ गन्ना कैश-क्रॉप पर आश्रित मढौरा, अमनौर, दरियापुर, बनियापुर, तिरैय्या, मशरक, मकेर, परसा आदि गाँवों के 20000 किसान और हज़ारों एकड़ खेती बर्बाद हो गए. इसकी 1500 एकड़ अरबों की इंडस्ट्रियल ज़मीन व्यर्थ पड़ी हुई, किसानों का 20 करोड़ से ज़्यादा बकाया है. मिल परिसर का पूरा क्षेत्र खंडहर, वीरान, अतिक्रमण अर्थात पूरा सर्वनाश! गुरारू मिल की कहानी इससे अलग नहीं है 1934 में शुरू हुए गुरारू चीनी मिल को 1992 तक जैसे मारा गया, यह अक्षम शासन का एक और उदाहरण भर है. रोड-रेल नेटवर्क जंक्शन का स्ट्रेटजिक इंडस्ट्रियल लोकेशन, 27 एकड़ कैम्पस, बर्मिघम की मशीनरी, राज्य से बाहर तक के गन्ने की प्रोसेसिंग, हज़ारों मज़दूर-किसानों के जीने का आधार! लेकिन गुरारू सुगर मिल का सरकार ने नाश कर दिया. उन्होंने कहा कि “1905 से 1995 तक चलने वाला चकिया का बंद चीनी मिल सरकार की नालायकी, उद्योग का शून्य ज्ञान, चोरी, किसानों से धोखा और चंपारण की उपेक्षा का प्रतीक है. पूर्वी चंपारण के 80% किसान गन्ना उपजाते हैं लेकिन मिल के लिये दूसरे ज़िलों पर निर्भर हैं और शोषित होते हैं.” सुश्री चौधरी सरकार से सवाल करती है कि पुराना प्लांट तो सरकारी लोगों ने लूट लिया, नये लगाने में सरकार को क्या दिक़्क़त है वह इन उद्योगों को फिर से क्यूं नहीं चालू करना चाहती है. बिहार से वादा करते हुए पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि “नये उद्योगों के साथ इन सब का पुनर्जीवन होना है, हज़ारों-लाखों रोज़गार का सृजन करना है. बिहार को फिर से चीनी उद्योग के शिखर पर ले जाना है. जिन्हें डेवलपमेंट और इंडस्ट्री की परिभाषा ही नहीं मालूम, उनसे और क्या होना था! अब सब बदलने का वक्त! फिर से बिहार चीनी उत्पादन में नं-1 बनने को तैयार रहे. प्लुरल्स पार्टी की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी के प्रयासों से खंडहरों में बदल गए मिल परिसरों का विलाप अब बंद होगा और उदास चिमनियां अब धुआँ उगलेगी. चीनी उद्योगों को फिर से जीवन देना ही उनका लक्ष्य है ताकि स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी मिल सके.