मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पदमश्री डॉ. महेश शर्मा ने दूसरी बार फिर 9 जुलाई को विश्वविद्यालय के विजीटर अर्थात माननीय राष्ट्रपति से गांधी के नाम पर स्थापित मोतिहारी के केंद्रीय विश्वविद्यालय के भ्रष्ट और अवैध कुलपति प्रो. संजीव शर्मा के अनैतिक और नियम विरुद्ध कृत्यों के खिलाफ मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अभी तक समुचित कार्रवाई न करने की शिकायत की है। उन्होंने माननीय राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि वे तत्काल इस विश्वविद्यालय के मामले में हस्तक्षेप करें क्योंकि उनके त्वरित आदेश के दो महीने बाद भी मंत्रालय कुलपति को बचाने में लगा है। उन्होंने कार्यकारी परिषद के एक सदस्य के हवाले से राष्ट्रपति को पुन: सूचित किया है कि कुलपति द्वारा विश्वविद्यालय के विभिन्न नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। इन्होंने वर्तमान कुलपति की नियुक्ति को भी पूर्व कुलपति की नियुक्ति की ही तर्ज पर भ्रामक तथ्यों के आलोक में अवैध ठहराया है। वर्तमान कुलपति द्वारा अपने कार्यकाल में की गई नियुक्तियों में हुई धांधलियों का भी पदमश्री डॉ. महेश शर्मा ने जिक्र किया है। इसके साथ-साथ विश्वविद्यालय की स्थापना के सालों बाद भी तमाम उच्च पदों, जैसे कुलसचिव, वित्त अधिकारी और परीक्षा नियंत्रक आदि के पदों को साजिशन खाली रखे जाने को लेकर इन्होंने ऐतराज जताया है। समग्र रूप से इन्होंने इन चंपारण के इस केंद्रीय विश्वविद्यालय को गांधी के सिद्धांतों के खिलाफ काम करने वाला बताते हुए कुलपति के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। ध्यातव्य है कि कुलाधिपति महेश शर्मा द्वारा इससे पूर्व दिनांक 11 मई, 2020 को भी इस संदर्भ में माननीय राष्ट्रपति को लिखा जा चुका था जिसमें उन्होंने कुलपति की बर्खास्तगी और जाँच की माँग की थी।
8 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रोफेसर किरण घई द्वारा भी माननीय मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्रालय को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा की निरंकुशता एवं भ्रष्टाचार समेत उनके द्वारा की जा रही व्यापक अनियमितताओं के खिलाफ एक पत्र लिखा गया है। इन्होंने लिखा है कि कुलपति द्वारा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठकों भ्रामक सूचनाएँ दी जाती हैं और तथ्य प्रस्तुत नहीं किए जाते। विश्वविद्यालय के विशेष कार्य अधिकारी श्री पद्माकर मिश्रा की भी इसमें संलग्नता का जिक्र किया गया है। इन्होंने बताया है कि कार्यकारी परिषद की 17वीं और 18 वीं बैठकों में वे परिषद के अधिकारों के खुले उल्लंघन के स्वयं नामित सदस्य के रूप में साक्षी रहे हैं। चयन समिति के सदस्यों के नाम प्रस्तावित करने का अधिकार गोपनीयता के नाम पर कुलपति द्वारा अपनी मुट्ठी में गलत ढंग से रखने के जिस कुत्सित प्रयास का उल्लेख आपने किया है उसके गवाह मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री चंद्र शेखर कुमार और यूजीसी के जितेंद्र त्रिपाठी भी रहे हैं। अनाधिकृत ढंग से प्रति कुलपति की नियुक्ति किए जाने की भी इन्होंने शिकायत की है। आपने वर्तमान कुलपति की नियुक्तियों में हुए भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर भी अपना अंसतोष शिकायत के साथ माननीय मंत्री को लिखा है। इस संदर्भ में शिक्षकों समेत स्थानीय लोगों द्वारा की गई असंख्य शिकायतों का भी आपने संज्ञान लेने का मंत्री जी से अनुरोध किया है। ज्ञात हो कि मंत्री महोदय को लिखने से पहले कुलपति को भी इन्होंने 4 जुलाई को एक ईमेल किया था जिसमें इन्होंने 30 जून, 2020 को आयोजित कार्यकारी परिषद की 18 वीं बैठक में कुलपति द्वारा की गई तानाशाही और राष्ट्रगान की मर्यादा के दुरुपयोग का जिक्र किया था। इन्होंने कुलपति द्वारा अवैध ढंग से वित्त समिति के दो सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी उसी ईमेल में अपनी क्षुब्धता भी जाहिर की थी। प्रति कुलपति की अवैध नियुक्ति का भी आपने इसमें जिक्र किया था। जिस प्रकार कुलपति प्रो. संजीव शर्मा के खिलाफ लगातार विभिन्न लोगों द्वारा शिकायतें की जा रही हैं और स्वयं सत्ता पक्ष से जुड़े वरिष्ठ लोग भी इन शिकायतों के पक्ष में खुद मंत्रालय और माननीय राष्ट्रपति को लिख रहे हैं, उसे देखते हुए कुलपति संजीव शर्मा के अनैतिक और भ्रष्ट कृत्यों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा कदम उठाया जाना अपेक्षित था। किंतु मंत्रालय का इन आरोपों पर राष्ट्रपति की पूर्व दखल के बाद भी चुप्पी साधे रहना सत्ता में ऊपर बैठे लोगों तक की इसमें मिली भगत का संकेत करता है। सबसे महत्वपूर्ण इस संपूर्ण प्रकरण में यह है कि प्रोफेसर संजीव शर्मा के खिलाफ उनकी कुलपति पद पर नियुक्ति को लेकर गंभीर आरोप हैं, जैसे कि उनके पास अपेक्षित शैक्षणिक अनुभव न होना, अपने आवेदन के साथ जालसाज़ी भरा विजिलेंस क्लियरेंस नत्थी करना आदि। यहाँ तक कि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में प्रवक्ता पद पर इनकी स्थायी नियुक्ति भी विवादास्पद कही जा रही है।